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Bhagwatgeeta

                           श्री परमात्मने नमः  शास्त्रों का अवलोकन और महापुरुषों के वचनों का श्रवण करके मैं इस निर्णय पर पहुंचा कि संसार में श्री भगवत गीता के समान कल्याण के लिए कोई भी उपयोगी ग्रंथ नहीं है! गीता में ज्ञान योग,  कर्म योग, ध्यान योग, भक्ति योग आदि जितने भी साधन बतलाए गए उनमें से कोई भी साधन अपनी श्रद्धा, रुचि और योग्यता के अनुसार करने से मनुष्य का शीघ्र कल्याण हो सकता है!      श्री भगवतगीता डाउनलोड कर सकते है ⬇️ Download Here Bhagwatgeeta

श्रीमहालक्ष्मी अष्टक

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        श्री इंद्रकृत श्रीमहालक्ष्मी अष्टक                      !!श्री गणेशाय नमः!!                         ॥ श्री महालक्ष्म्यष्टकम् ॥                नमस्तेस्तू महामाये श्रीपिठे सूरपुजिते । शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ १ ॥ नमस्ते गरूडारूढे कोलासूर भयंकरी । सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ २ ॥ सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी । सर्व दुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥३ ॥ सिद्धीबुद्धूीप्रदे देवी भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी । मंत्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ४ ॥ आद्यंतरहिते देवी आद्यशक्ती महेश्वरी । योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ५ ॥ स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ती महोदरे । महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ६ ॥ पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्हस्वरूपिणी । परमेशि जगन्मातर्र महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ७ ॥ श्वेतांबरधरे देवी नानालंकार भूषिते । जगत्स्थिते जगन्मार्त महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ८ ॥ महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेत् भक्तिमान्नरः । सर्वसिद्धीमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥ ९ ॥ एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनं । द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य समन्

पुरुषोत्तम मास

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अधिक मास मे जाप करने की महिमा :-  मात्र चार  श्लोक  के जाप करने से ही मिल सकता है,  श्रीमद्भागवत पढ़ने का पुण्य :- पुरुषोत्तम महीने में श्री भागवत सुनने और  इसके साथ ही श्रीमद्भागवत का पाठ किया जाए तो इसका  अनंत पुण्य फल मिलता है।  पुरुषोत्तम महीने में चतु:श्लोकी भागवत मंत्र पढ़ने से ही पूरी श्रीमद्भागवत पाठ का फल मिल जाता है।  भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी 4 श्लोक सुनाए थे। फिर ब्रह्मा जी ने नारद जी को और उन्होंने व्यासजी को सुनाए। व्यास जी ने उन्हीं 4 श्लोकों से ही 18000 श्लोक का श्रीमद्भागवत महापुराण बना दिया। भगवान विष्णु के ही मुंह से निकले उन 4 श्लोक को ही चतु:श्लोकी भागवत कहा जाता है। पुरुषोत्तम माह में इनको पढ़ने से ही हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। मंत्र अहमेवासमेवाग्रे नान्यद् यत् सदसत् परम्। पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम् ॥(1) ऋतेऽर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि। तद्विद्यादात्मनो मायां यथाऽऽभासो यथा तमः ॥(2) यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु। प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम्॥(3) एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनाऽऽत्मनः। अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्या