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Bhagwatgeeta

                           श्री परमात्मने नमः  शास्त्रों का अवलोकन और महापुरुषों के वचनों का श्रवण करके मैं इस निर्णय पर पहुंचा कि संसार में श्री भगवत गीता के समान कल्याण के लिए कोई भी उपयोगी ग्रंथ नहीं है! गीता में ज्ञान योग,  कर्म योग, ध्यान योग, भक्ति योग आदि जितने भी साधन बतलाए गए उनमें से कोई भी साधन अपनी श्रद्धा, रुचि और योग्यता के अनुसार करने से मनुष्य का शीघ्र कल्याण हो सकता है!      श्री भगवतगीता डाउनलोड कर सकते है ⬇️ Download Here Bhagwatgeeta

भगवान श्रीकृष्ण ने श्रेष्ठ अर्जुन से कहा कि हे भारत संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ जाता है तब-तब धर्म की पुर्नस्थापना के लिए मैं अवतार लेता हूं

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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।                  गीता के इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अवतार का रहस्य दिया  है। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रेष्ठ अर्जुन से कहा कि हे भारत संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ जाता है तब-तब धर्म की पुर्नस्थापना के लिए मैं अवतार लेता हूं।                           द्वापर युग में क्षत्रियों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी वह अपने बल के अहंकार में देवताओं को भी ललकारने लगे थे। इसके अलावा हिरण्यकश्य और हिरण्याक्ष ने रूप बदलकर धरती पर जन्म लिया था जिनका अंत करने के लिए भगवान विष्णु को स्वयं अवतार लेना था। इनके अलावा और भी कई कारण थे जिनके कारण भगवान को द्वापर के अंत में अवतार लेना पड़ा।  1 . हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष का धरती पर जन्म भगवान श्रीकृष्ण का परमशत्रु कंस पूर्वजन्म में हिरण्यकश्यप था। भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के द्वरपाल जय और विजय शाप के कारण बार-बार असुर रूप में जन्म ले रहे थे। भगवान विष्णु ने इन्हें

भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन कौन से है

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श्री कृष्ण के अवतार इस प्रकार है :- 1. श्री सनकादि मुनि   : धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोक पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष मार्ग परायण, ध्यान में तल्लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। ये भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं। 2 .वराह अवतार : धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार वराह रूप में लिया था। वराह अवतार से जुड़ी कथा इस प्रकार है- पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले

गाय माता के इन नामों के जप से प्रसन्न हो जाते हैं भगवान श्रीकृष्ण

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                             गाय माता के इन नामों के जप से प्रसन्न हो जाते हैं  भगवान श्रीकृष्ण   हिन्दू धर्म में गाय को माता, कामधेनू, कल्पवृक्ष और सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली बताया गया है। गाय माता के संपूर्ण शरीर में तैतीस कोटी देवी-देवताओं का वास होने का उल्लेख भी शास्त्रों में मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण गौ सेवा के अन्नय प्रेमी थे। शास्त्रों में गाय माता के 108 नाम बताएं गए है। कहा जाता है कि गाय के इन 108 नामों का जप करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं। जानें गौमाता के कौन से 108 नाम का जप करने से सभी कामनाएं पूरी होने के साथ मनवांछित फल की प्राप्ति भी होती है। कष्टों से मिलेगी मुक्ति, अमावस्या के दिन पीपल के नीचे कर लें ये उपाय ।। दोहा ।। श्री गणपति का ध्यान कर जपो गौ मात के नाम। इनके सुमिरन मात्र से खुश होवेंगे श्याम।। 1- कपिला, 2- गौतमी, 3- सुरभी, 4- गौमती, 5- नंदनी, 6- श्यामा, 7- वैष्णवी, 8- मंगला, 9- सर्वदेव वासिनी, 10- महादेवी, 11- सिंधु अवतरणी, 12- सरस्वती, 13- त्रिवेणी, 14- लक्ष्मी, 15- गौरी, 16- वैदेही, 17- अन्नपूर्णा, 18- कौशल्या, 19- देवकी, 20- गोपालिनी।

श्री कृष्ण कुल का नाश और मौसुल युद्ध :

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KRISHNABHAKTIRAS-4 श्री कृष्ण कुल का नाश :  गांधारी के शाप के चलते भगवान श्री कृष्ण के कुल का नाश हो गया था। उल्लेखनीय है कि गांधारी ने यदुकुल या यदुवंश के नाश का शाप नहीं दिया था। मथुरा अंधक संघ की राजधानी थी और द्वारिका वृष्णियों की। ये दोनों ही यदुवंश की शाखाएं थीं। यदुवंश में अंधक, वृष्णि, माधव, यादव आदि वंश चला। श्रीकृष्ण ने मथुरा से जाकर द्वारिका में अपना स्थान बनाया था। श्रीकृष्ण ने द्वारिका का फिर से निर्माण कराया था, क्योंकि उनकी चीन यात्रा के दौरान शिशुपाल ने द्वारिका को नष्ट कर दिया था। श्रीकृष्ण वृष्णि वंश से थे। वृष्णि ही 'वार्ष्णेय' कहलाए, जो बाद में वैष्णव हो गए। महाभारत युद्ध के बाद जब 36वां वर्ष प्रारंभ हुआ तो राजा युधिष्ठिर को तरह-तरह के अपशकुन दिखाई देने लगे। विश्‍वामित्र, असित, दुर्वासा, कश्‍यप, वशिष्‍ठ और नारद आदि बड़े-बड़े ऋषि द्वारका के पास पिंडारक क्षेत्र में निवास कर रहे थे। एक दिन सारण आदि किशोर जाम्‍बवती नंदन साम्‍ब को स्‍त्री वेश में सजाकर उनके पास ले गए और बोले- ऋषियों, यह कजरारे नैनों वाली बभ्रु की पत्‍नी है और गर्भवती है। यह कुछ पूछना चाहती है लेक

श्री कृष्ण के पुत्रो का रहस्य

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श्री  कृष्ण के 80 पुत्रों का रहस्य:  1.श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र:- प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू। 2.जाम्बवती-कृष्ण के पुत्र:- साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, शतजित, सहस्त्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ और क्रतु। 3.सत्यभामा-कृष्ण के पुत्र:-  भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु। 4.कालिंदी-कृष्ण के पुत्र:- श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास और सोमक। 5.मित्रविन्दा-श्रीकृष्ण के पुत्र:- वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महांस, पावन, वह्नि और क्षुधि। 6.लक्ष्मणा-श्रीकृष्ण के पुत्र:- प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊर्ध्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजित। 7.सत्या-श्रीकृष्ण के पुत्र:- वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगुप्त, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुंति। 8.भद्रा-श्रीकृष्ण के पुत्र:- संग्रामजित, वृहत

श्री कृष्ण की रानी और उनके परम शक्तिशाली पुत्रो का विवरण इस प्रकार है !

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KRISHNABHAKTIRAS-2 श्री कृष्ण की रानी और उनके परम शक्तिशाली पुत्रो  का विवरण इस प्रकार है ! आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईपू में हुआ। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है। पुराणों के अनुसार 8वें अवतार के रूप में विष्णु ने यह अवतार 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से 8वें पुत्र के रूप में मथुरा के कारागार में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकलने के बाद 8वें मुहूर्त में हुआ। तब रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि थी जिसके संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5125 वर्ष पूर्व) को जन्म हुआ। ज्योतिषियों के अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था। भगवान श्रीकष्ण ने आठ महिलाओं से विधिवत विवाह किया था। इन आठ महिलाओं से उनको 80 पुत्र मिले थे। इन आठ महिलाओं को अष्टा भार्या

जय श्री कृष्णा, गोपाल, मुरलीधर, वशुदेव, नन्दलाल, माखनचोर, गिरधर, कन्हैया, वैंकुत्पति, द्वारका धीश तेरी जय हो l

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कृष्णभक्तिरस -1 जय श्री कृष्णा, गोपाल, मुरलीधर, वशुदेव, नन्दलाल, माखनचोर, गिरधर, कन्हैया, वैंकुत्पति, द्वारका धीश तेरी जय हो l श्रीकृष्ण  भगवान  विष्णु  के 8वें अवतार और  हिन्दू धर्म  के ईश्वर माने जाते हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म  द्वापरयुग  में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि  वेदव्यास  द्वारा रचित  श्रीमद्भागवत  और  महाभारत  में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है।  भगवद्गीता  कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण  वसुदेव  और  देवकी  की 8वीं संतान थे।  मथुरा  के कारावास में उनका जन्म हुआ था और  गोकुल  में उनका लालन पालन हुआ था।  यशोदा  और  नन्द  उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्हों